कांकेर जिला, उत्तर बस्तर के अंतागढ़ तहसील के 200 गोंड़ आदिवासी मन एक संघरा चार बछर मं एक फेर सेमर गांव आथें. अपन पुरखा मन ल मनाय खातिर जातरा तिहार मनाय बर कतको आदिवासी मन पड़ौसी जिला कोंडागांव अउ नरायनपुर ले घलो आथें. ये मन भरोसिल मानथें के मरे उप्पर ले ओमन के सियान मन ह कऊनों न कऊनों रूप मं संगे रहिथें. कहे जाथे के मरनहारी मन ल देवता धामी बनके जातरा मेला मं अपन परिवार ल देखें अऊ मेल मुलाकात बर आथें. महूं ह फागुन के महीना 2018 मं जातरा मेला मं आय रेहेंव.
पहाड़ी परी कुपर लिंगो ह ऐतराब मं करसाद जातरा के रूप मं अगाजे हवय. तीन दिन तक ले चलत ये देंवता मन के सम्मेलन मं नीत 20 हजार मइनखे जुर जाथें. सम्मेलन मं गोंड़ गुनिया मन के बड़े जुन्ना कहिनी के सियान मनखे परी कुपर लिंगो के नांव मं तिहार मनाथें. केहे जाथे के कुपर लिंगो ह अइसन देवता आय, जेखर मान गौन करैया आदिवासी मन के घात असन आनी बानी के नाच गाना, गीत संगीत हाबय जेन ह गोंड़ आदिवासी मन के अलग चिन्हारी कराथे.
पहिली बखत जब जातरा सुरू होइस त बारा बारा बछर के फेर मं होवय. ओखर पाछू सात बछर के फेर मं होइस तहां अब चार चार बछर मं होथे. कोंडागांव जिला के खालेमुरबेंड़ गांव के बासिंदा एक झिन गोंड़ आदिवासी विष्णु देव पड्डा ह अपन जात भाई अऊ संगवारी मन सो मिलके ये तिहार के बेवस्था समहालत रिहिन. वो हा कहिथे, “पहिले ये ला कमती लोगन मन जानत रहिन फेर अब एकर देखे सुने ह जियादा होय ले बनेच अकन जुरथें तेकर सेती एला अऊ बनेच उछाह ले मनाय जावत हवय." अब मोबइल फोन, टैक्सी, आनी बानी के मोटर गाड़ी सेती इहां तक पहुंचना सरल होगे हाबय.
मंय पुछेंव त ये तिहार के बारे मं बिस्नु देव कहिथें के ये तिहार ह गोंड़ आदिवासी मन के 750 गोत भाई मन सेकलाथें। गोंडा, मुरिया अऊ कोया एक्के गोत हरय। बस्तर, तेलंगाना अऊ आंध्रप्रदेश मं आदिवासी मन के 72 गोत होथे. जेन मन अपन पुरखा मन के देंवता मंडकू कलम ल अपन संग मं धरके सम्मेलन मं आंथें। छेरी, बाघ, सांप, अऊ कछुआ जइसन जीव मन ल एमन अपन देंवता के छांहित रूप मं मानथे। अऊ अपन कुल देबी देंवता मान के इही मन के पूजा पाठ करथें, ये जीव मन के सुरक्षा करथें।
तो कलम कऊन आंय? आदिवासी मन के रोजी-रोटी के समस्या ला लेके काम करैइय्य गैर सरकारी संगठन के कांकेर सहर के बासिंदा गोंड़ कार्यकर्ता केशव सोरी कहिथे, “कलम ह हमर पुरखा आय. हमर सियान मन इंतकाल के बाद पेन बन जाथें. हमन मानथन के पेन के रूप मं ओमन हमर संग रहिथें अऊ ओकर पूजा पाठ करथन. हमन अपन संगी–रिश्तेदारी के कलम मं घलो जाथन. गोंड़ मन अपन अपन कलम संग ये मेला मं जुरथें. इहां अवइया जम्मों मइनखे मन एक दूसर सो गोठियाथें, खुसी मनाथें.”
अइसे माने गे हाबय के कलम ह पुरखौती देबी देंवता मन नाचथें, गाथें, रोथें अऊ अपन परिवार के मन ला हिरदे मं लगा लेथें. लोगन मं अपन समस्या ले के आथें अऊ बदला मं समाधान पाथें. कतको आदिवासी मन मेला मं वो मं ला गोंदा फूल के माला भेंट करथें। मोला बताय गिस के कलम ल फूल पसंद रहिथे एकरे सेती जातरा मं फूल बिक्कट बेचाथे.
कांकेर जिला के घोटिया गांव के बासिंदा पुजेरी देवसिंग कुरेती कहिथे, "हमन अंग (देंवता मन) ला ले जाथन अऊ लिंगो डोकरा के सेवा करथन (डोकरा बड़े आय, जेन ला देंवता धन भगवान के रूप मं सम्मान देय जाथे). हम वोला फूल, सुपारी, लाली अऊ लिंबू चढाथन, सूरा अऊ बकरा घलो चढाथन.” परम्परा के मुताबिक लोगन मन दूरिहा दुरिहा ले इहाँ आथें, अक्सर रतिहा मं घूमत रहिथें, लकड़ी के पालकी मं अंगा आथे, फूल, कुकरी अऊ छेरी मं के परसाद चढ़थे. ये बछर मं य कुछेक मोटर गाड़ी देखेंव जेन मं लड़ के अंगा देव ला लाय गेय रहिस - ये हा नव विकास कस लागथे, केसव सोरी ये ला गौर करथे, जेकर संग मंय ये तिहार मं गेय रहेंव.
मंय ह एखर बारे मं 50 बछर उमर सरकारी करमचारी के जे आर मंडावी ले पूछेंव, जेन हा अपन आंगा देव ला बोलेरो मं लेके आय रहिस. वो हा बताथे, “मंय ह घोड़ागांव ले आय हवंव। हमर देंवता ह कांकेर जिला के तेलावत गांव मं हवय। पहिली हमन आंगा देव ल अपन खांध मं बइठार के रेंगत लानत लेगत रेहेन. तब हमर बड़े जन परिवार रिहिस.अब नानकुन होगे. अब अकेल्ला 26 कोस चलना मुस्किल आय. एखरे सेती हमन अपन अंगा देव ले अनुमति मांगेंन अऊ जब अंगा उदुम कुमारी हा (जम्मो अंगा लिंगो देव ले जुरे हवय) अनुमति दिस त हमन मोटर गाड़ी मं लेके इहना आयेन.”
कांकेर जिला के दोमहर्रा गांव ले जातरा पहुंचे मैतूराम कुरैती जेन ह अपन आंगा ला खांध मं धरके आय हवय, मोला कहिथे, ''ये हमर पुरखा मन के जगा आय. हमन बूढ़ी माय ला संग मं लाय हवन, जेन हा लिंगो के देव के रिश्तेदार हरय. हमन ल बूढ़ी माय ल संग लाने के नेवता मिले रिहिस .”
लिंगो के रहे के जगा जेन मं तिहार मानी जाही उहाँ जाय के पहिली परिवार ह रुख तरी अराम करथे. वो मं लकरी जला के भात, सब्जी, कुकरी अऊ दिगरचीज रांधथें अऊ रागी के उबले पानी पीथें. कांकेर जिला के कोलियारी गांव के घस्सू मंडावी वो मन मं एक झिन आय. वो हा कहिथे, “हमन लिंगो देव के बड़े भाई मूड डोकरा ला लाए हवन. ओकर छोटे भाई अऊ ओकर बेटा मन अऊ बेटी मन घलो इहाँ हवंय. ये ह यह एक पुराना परंपरा आय अऊ लिंगो डोकरा के परिवार के सदस्य मन इहाँ एक-दूसर से मिले के सेती जुरथें."
तिहार के मैदान मं फोटो अऊ वीडियो बनाय के अनुमति नहीं आय, हल फिलहाल मं खासकर करके वीडियो मन मं गोंड संस्कृति अऊ परंपरा ला गलत तरीका ले दिखाय गे रहिस जेकर सेती ये मन सतर्क हो गे हवंय. मंय तिहार के जगा ले दुरिहा फोटो खींचे ला तय कर लेथों.
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छत्तीसगढ़ के (उत्तर बस्तर) कांकेर, कोंडागांव अऊ नरायनपुर जिला के गोंड आदिवासी तिहार के झंडे लेके आथें जेन हा वो मन के पुरखा के देंवता मन के प्रतीक आय, वो मन के मानना आय के वो मं ले मिले बर आय हवंय
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कुछेक भगत मन अपन गांव ले बनेच दुरिहा ले आथें – कभू कभू रात मं – अपन अंगा देव ला लेके, जेन मन गोंड पौराणिक कथा के परी कुपर लिंगो ले सम्बन्ध राखथें
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कुछेक परिवार मन अपन अंगा देव ला मोटर गाड़ी (डेरी) मं लाथें, सेमरगाँव ट्रैक्टर, पइदल, सइकिल अऊ फटफटी मं आथें. मोबइल फोन, फटफटी अऊ टेक्सी तक के पहुंच ह ये तिहार ला बढ़ा दे हवय
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एक घाओ जब गोंड तय जगा मं पहुंच जाथें जेन ला लिंगो गुड़ी धन लिंगो के दरबार (मंदिर) के रूप मं जाने जाथे, त वो मन तिहार के मैदान मं जजाय ले पहिली अराम करथें
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गोंड मन पारंपरिक पोशाक मं 'देंवता मन के सबले बड़े’ करा आथें - ये तिहार हा वो मन के खास सांस्कृतिक पहिचान के संग मिले के बखत आय
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ये तिहार अन्तस् ले परी कुपर लिंगो के खुसी मनाथे, जेकर ले ये समाज के कतको सांस्कृतिक विरासत बहिर आथे
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तिहार मं सर मं बोझा धरे माई लोगन मं घलो होथें, कतको स्वयं सहायता समूह के आंय अऊ ये मन रांधे खाना ला बेचे ला आय हवंय
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तिहार के झा मं आय के पहिली लोगन मं खाथे – पिथें. घाम मं इहाँ के लोकप्रिय ठंडा पेय रागी के पानी आय
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जातरा (उत्तर बस्तर) कांकेर, कोंडागांव अऊ नारायणपुर जिला के अलग अलग इलाका ले आदिवासी नचकारिन अऊ संगीत मण्डली ला अपन डहर खींच लेथे. बजैय्या मन के मण्डली एक बखत मं एक धन दू ठन आ सकत हवंय फेर बाकी मं अपन बरी ला अगोरत रथें
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अवैय्या मन अपन पुरखा के देवी देंवता के प्रसाद के रूप मं बांस के बने समान, जेवर अऊ दीगर समान बिसोथें
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ये हा रहंचुली आय-हाथ के संगे संग मोटर ले घलो चलथे. हाथ ले चलैय्या रहंचुली वाला मन ला अब ग्राहिक मिले मं मुस्किल होवत हवय
अनुवाद: निर्मल कुमार साहू