सांझ में जइसहीं अन्हार होखे लागल, रंग-बिरंगा लड़ी से सजल ओम शक्ति देवी के कट-आउट जगमगा उठल. बंगलामेडु के इरुलर समुदाय के लोग आपन पूजनीय देवी खातिर, अंगार पर चले के उत्सव, तीमिति तिरुविला मना रहल बा.
दुपहरिये से लकड़ी जरे के सुरु हो जाला. सांझ होत-होत ई अंगार के रूप ले लेवेला. श्रद्धालु लोग लकड़ी के इहे अंगार के पातर-पातर फइला देवेला. देख के अइसन लागेला केहू चमकउआ फूल के बिछौना बिछा देले होखे. तीमिति मनावे वाला इरुलर मरद-मेहरारू इहे अंगार पर चलेला. एकरा पर चले के ‘पू-मिति’, चाहे फूल पर चले जइसन मानल जाला.
उहंवा जुटल लोग में बहुते उत्साह आउर श्रद्धा के माहौल बा. लगे के गांव से सैंकड़न के गिनती में लोग उहंवा आग पर चले वाला इरुलर लोग के देखे आउर देवी के प्रति आपन आस्था देखावे खातिर जुटल बा. ओम शक्ति इरुलर लोग के ना, बलुक हिंदू देवी बाड़ी. बाकिर पूरा तमिलनाडु में तेज आउर शक्ति के प्रतीक के रूप में उनकर बहुते भक्ति भाव से पूजा कइल जाला.
तमिलनाडु में इरुलर (इरुला भी बोलल जाला) लोग के अनुसूचित जनजाति समुदाय मानल जाला. ऊ लोग के इहंवा कन्निअम्मा के पूजा करे के परंपरा बा. कन्निअम्मा के सात गो कुंवारी देवी में से मानल जाला. इरुलर लोग के घरे-घरे एगो कलसम, माने माटी के बरतन स्थापित होखेला जेकरा देवी मानल जाला. ई बरतन नीम के ढेरे पत्ता पर रखल जाला.


बंगलामेडु में कन्निअम्मा के एगो मंदिर (दहिना) जहंवा नीम के पत्ता पर कलसम (बावां) रखल बा


बावां: ओम शक्ति देवी खातिर तीमिति तिरुविला मनावे के तइयारी चलत बा. श्रद्धालु लोग गील कपड़ा पहिनके आग जरावेला, आउर देखेला कि सभे लकड़ी एक जइसन जरल कि ना. आग पर चले से पहिले अंगार के एक समान पसारल जाला. दहिना: भाई जी, चिन्नदुरई आउर जी.विनयगम फूल से सजावल दूध के बरतन, पू-कारगम ले जात बाड़न
ओम शक्ति के बंगलामेडु इरुलर समुदाय के उत्सव का मायने बा?
जी. मणिकंदन, 36 बरिस, साल 1990 के दशक के आखिर में घटल एगो घटना के बारे में बतावत बाड़न. जाति चलते सुरु भइल दुस्मनी के कारण ऊ लोग के चेरुक्कनुर गांव में आपन घर से रातों-रात भागे के पड़ल. असल में उनकर बहिन के एगो गैर-इरुल लइका से प्रेम हो गइल रहे. परिवार के चेरुक्कनुर झील लगे एगो छोट जगह छिपे के पड़ गइल.
ऊ बतावत बाड़न, “सगरे रात एगो गवली (छिपकली) हल्ला मचावत रहे, एकरा से हमनी के तनी शांति महसूस भइल. हमनी एकरा अम्मन (देवी) के आशीर्वाद समझनी.” उनकरा हिसाब से ओह दिन देवी माई ऊ लोग के बचइली.
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“घर छूटल, त काम आउर खाए खातिर तरस गइनी. माई हमनी के पेट भरे खातिर खेत से मूंगफली तोड़ के लावस, चाहे छोट जनावर के शिकार करस. अम्मन के कृपा रहे हमनी बच गइनी,” ऊ इयाद करत बाड़न. ( पढ़ीं: बंगलामेडु में चूहा संगे जिनगी )
मणिगंदन के परिवार आउर उनकरा संगे भागल कुछ लोग आखिर में बंगलामेडु में जाके बस गइल. बंगलामेडु चेरुक्कनुर झील से एक किमी दूर पड़ेला. उनकरा उहंई झील लगे कामो मिल गइल.
बंगलामेडु में सुरु सुरु में दसो परिवार ना बसल रहे. आउर आज उहंवा 55 गो इरुल परिवार रहेला. चेरुक्कनुर के इरुलर टोला एगो सड़के के आस-पास बसल बा. दुनो ओरी खुलल झाड़ी से घेराइल घर बनल बा. बहुते संघर्ष के बाद 2018 में इहंवा बिजली आइल. हाल में कुछ पक्का घर भी तइयार भइल बा. इहंवा रहे वाला इरुलर लोग दिहाड़ी मजूरी करेला आउर मनरेगा पर निर्भर बा. मणिगंदन, बंगलामेडु के कुछ अइसन मुट्ठी भर लोग में से हवन जे मिडिल स्कूल तक पढ़ल बा.


बावां: ओम शक्ति देवी के मंदिर, जेकरा बंगलामेडु के बाहरी छोर पर पी.गोपाल द्वारा स्थापित कइल गइल रहे. मंदिर में घुसे के दरवाजा के दुनो ओरी के हिस्सा नरियर आउर केला के पत्ता से सजावल बा आउर दरवाजा के सोझे एगो छोट अग्निकुंड बनावल बा. दहिना: जी.मणिगंदन तोर, चाहे हार उठइले बाड़न


जी.सुब्रमणि, अम्मन देवी के ले जाए वाला ट्रैक्टर (बावां) पर तोर रखत बाड़न. फेरु ऊ बिछावल गइल अंगार के चारों ओरी चक्कर काटत (दहिना) आग पर चले वाला लोग के आगू आगू चलत बाड़न
मणिगंदन के बाऊजी पी.गोपाल आउर इरुलर समुदाय के कुछ बूढ़-पुरनिया लोग इहंवा आके बसला के कुछ बरिस बाद मिलके गांव में ओम शक्ति के मंदिर बनवले रहे. ऊ लोग संकट में रक्षा करे खातिर अम्मन के प्रति आपन आभार जतावे के चाहत रहे. साल 2018 में आपन मौत के पहिले ले उहे इहंवा के पुजारी भइलन. मणिगंदन बतावत बाड़न, “पहिले मंदिर एगो छोट झोंपड़ा रहे. हमनी झील के माटी लाके अम्मन के मूरति बनइनी. हमार बाऊए जी इहंवा आदि तीमिति तिरुवला सुरु कइलन.”
मणिगंदन के बड़ भाई जी. सुब्रमणि, गोपाल के स्वर्गवासी भइला के बाद उनकर पुजारी वाला पदवी संभार लेलन. सुब्रमणि हफ्ता में एक दिन मंदिर के ब्यस्था देखेलन आउर बाकी के छव दिन मजूरी करेलन.
बंगलामेडु के इरुलर लोग करीब 15 बरिस से जादे समय से ओम शक्ति से जुड़ल एह कार्यक्रम के पूरा भक्ति भाव से मनावल आवत बा. कार्यक्रम के आखिर में अंगार पर खाली गोड़े चले के परंपरा बा. उत्सव जुलाई-अगस्त के आस-पास पड़े वाला तमिल महीना ‘आदि’ में मनावल जाला. इहे घरिया चुभत गरमी से छुटकारा पावे के मौसम, बरसात सुरु हो जाला. अइसे त इरुलर लोग ई त्योहार हाले में मनावे के सुरु कइलक ह, बाकिर तीमिति तिरुवल्लुर एह जिला के तिरुत्तनी तालुका में आदि महीना के दौरान आमतौर पर मानवल जाला. एह में महाकाव्य महाभारत के द्रौपदी अम्मन, मरिअम्मन, रोजा अम्मन, रेवती अम्मन जइसन देवी-देवता के पूजा कइल जाला.
“गरमी आवेला त लोग के अक्सरहा अम्मन (चेचक) हो जाला. हमनी ठीक करे खातिर अम्मन (देवी) के मंदिर जाके पूजा करिले,” मणिगंदन बतइलन. ऊ बात करे घरिया देवी आउर बेमारी दुनो खातिर अम्मा शब्द ही बोलत रहस. एकरा पाछू इहे धारणा बा कि देविए बेमारी देवेली आऊर उहे एकरा से आपन भक्त लोग के बचा सकेली.
बंगलामेडु में गोपाल जब से तीमिति उत्सव सुरु कइलन, तबे से एगो गैर-इरुलर परिवार एह में हिस्सा लेवे आवे लागल. ई परिवार पड़ोसी गुडीगुंटा गांव के रहे वाला बा. इहे उहे परिवार बा जेकर खेत में ऊ लोग गांव से भाग के शरण लेले रहे.


बावां: पुरनका मंदिर के माटी के मूरति के बगल में एगो पत्थर के मूरति बा, जेकरा एगो ब्राह्मण पुजारी नयका मंदिर के भवन में प्रतिष्ठित कइलन. दहिना: कुछ गैर-इरुलर परिवार. एगो परिवार अंगार पर चल रहल बा
टी.एन. कृष्णन, 57 बरिस, खेत मालिक हवन. उनकरा संगी-साथी लोग पलनी कहेला. ऊ बतावत बाड़न, “इरुलर लोग के अलावे, हमनी 10 गो लोग के परिवार आउर दोस्त सुरुए से आग पर चलत बानी.” पलनी के घर के लोग मानेला कि ओम शक्ति देवी के पूजा कइला के बाद ऊ लोग के इहंवा बच्चा के जन्म हो पाइल.
ऊ लोग इरुलर समुदाय के मामूली झोंपड़ी वाला मंदिर के जगह छोट पक्का भवन बना के देवी के प्रति आपन सच्चा भक्ति आउर आभार जतइलक. उहे लोग इरुलर लोग के लगावल अम्मन के माटी के मूरति के जगहा पत्थर के मूरति स्थापित कइलक.
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बंगलामेडु रहे वाला इरुलर लोग आदि तीमिति के बहुत बेसब्री से असरा ताकत रहेला. एकर तइयारी त्योहार सुरु होखे के कुछ दिन पहिलहीं से सुरु हो जाला. अंगार पर चले वाला लोग आपन कलाई पर एगो काप्पु, मतलब पवित्र जंतर बांधेला आउर त्योहार तक खाए-पिए के सख्त नियम के पालन करेला.
“काप्पु एक बेरा पहिनला के बाद, हमनी माथा के ऊपर से नहाइले. मीट-मछरी बंद हो जाला. गांव से बाहिर ना जाइले,” एस. सुमति बतइली. बंगलामेडु में उनकर एगो छोट दोकान बा. कुछ लोग ई नियम एक हफ्ता तक मानेला, त कुछ लोग जादे बखत तक. मणिगंदन के कहनाम बा, “जे जेतना दिन चाहे ओतना दिन नियम मान सकेला. बस काप्पु पहिनला के बाद हमनी गांव ना छोड़ सकीं.”
डॉ. एम. दामोदरन एगो गैर-लाभकारी संस्थान ‘ऐड इंडिया’ से जुड़ल बाड़न. एह बीच ऊ बरसन ले एह समुदाय संगे काम कइलन. उनकरा हिसाब से ई अनुष्ठान एक संस्कृति से दोसरा संस्कृति के बीच विचार, चाहे प्रथा के फैलाव बा. ऊ कहले, “व्रत, उपवास, एगो खास तरह के रंग के कपड़ा पहिननाई, सामुदायिक कार्यक्रम जइसन प्रथा अब बहुते (गैर-इरुलर) समुदायन में बड़ पैमाना पर सुरु हो गइल बा. ऊ संस्कृति इरुला समुदाय के कुछ हिस्सा में आ गइल बा. बाकिर इरुला के सभे बस्ती में एकर चलन नइखे.”
बंगलामेडु में इरुलर लोग दिन भर होखे वाला पूजा-पाठ आउर अनुष्ठान संभारेला. जगह जगह होखे वाला सजावट में थोड़ा-बहुत योगदान करेला. त्योहार वाला दिन भोरे से मंदिर के रस्ता पर लागल पेड़ के नीम के ताजा पत्ता के गुच्छा से सजावल जाला. लाउडस्पीकर पर भक्ति संगीत बाजत रहेला. नरियर के ताजा पत्ता के चटाई आउर केला के लमहर-लमहर पत्ता से मंदिर के प्रवेश द्वार सजावल जाला.


के.कन्निअम्मा आउर एस. अमलादेवी बलि चढ़ल बकरा आउर मुरगा (बावां) के खून से सनल चाउर ले जात बाड़ी. दहिना: ऊ लोग एकरा गांव के पवित्र करे खातिर जगह-जगह छींट दीहि

![Right: Koozhu, a porridge made of rice and kelvaragu [raagi] flour is prepared as offering for the deity. It is cooked for the entire community in large aluminium cauldrons and distributed to everyone](/media/images/08b-20190811-_DSC4561-ST-Our_mud_idol_was_.max-1400x1120.jpg)
बावांं: तीमिति तिरुविला में पूजा-पाठ सुरु होखला पर भीड़ में से कुछो मेहरारू लोग अइसे बरताव करेला कि ओह लोग पर देवी आ गइल बाड़ी. ऊ लोग के ठंडा पानी डाल के होस में लावल जाला. बगले में ठाड़ बच्चा लोग ई सभ देख रहल बा. दहिना: कुलु, चाउर आउर केलवरगु (रागी) से बनल दलिया से देवी मां के प्रसादी तइयार कइल जाला. प्रसादी एल्यूमीनियम के बड़ कड़ाही में पकावल जाला आउर सभे के बांटल जाला
काप्पु पहिरे वाला लोग हरदी जइसन पियर रंग के कपड़ा में मंदिर आवेला. दिने से पूजा सुरु हो जाला. सुरु में अम्मन के अरुलवक्कु, चाहे दिव्य प्रवचन होखेला. मानल जाला कि प्रवचन खातिर देवी मां केहू के चुनेली. मणिगंदन के कहनाम बा, “अम्मन जब केहू पर आवेली, त ओकरे जरिए दोसरा लोग से बात करेली. जे लोग एकरा अंधविश्वास मानेला, ओह लोग के मंदिर में खाली एगो पत्थर देखाई देवेला. हमनी खातिर मूरति वास्तविक चीज बा, जेकरा में प्राण बा. ऊ हमनी के माता समान बा. हमनी उनका से आपन लोग जेका बात करिले. माता हमनी के परेसानी सुनेली आउर ओकरा दूर करे के रस्ता बतावेली.”
मणिगंदन के बहिन कन्निअम्मा हर साल अरुलवक्कु देवेली. गांव के सीमा पर मुरगा आउर बकरी के बलि देला के बाद ओकर खून से सनल चाउर के मंदिर के चारों ओरी छींटेली. स्वयंसेवी लोग पूरा समुदाय खातिर चाउर आउर रागी से तइयार गरमा गरम कुलु, माने दलिया पकावेला. ई सभे में बांटल जाला. सांझ के जुलूस निकाले खातिर देवी के तइयार कइल जाला. देवी के तइयार करे खातिर दिन भर तोरण, केला के डंठल आउर फूल से हार बनावे में बीतेला.
माटी के झोंपड़ी के जगहा पक्का मंदिर बने से पछिला कुछ बरिस से त्योहार के रुतबा बढ़ गइल बा. इहंवा अंगार पर चले वाला करतब देखे खातिर पलनी के गुडीगंटा गांव से लेके पड़ोसी गांव तकले, लोग के भारी भीड़ जुटेला. मणिगंदन कहले, “त्योहार कबो ना रुकल. इहंवा ले कि कोवड घरिया भी ना. अइसे ऊ दु बरिस भीड़ जादे ना जुटल रहे.” साल 2019 में, कोविड सुरु भइला से एक बरिस पहिले एह उत्सव में मोटा-मोटी 800 लोग आइल रहे.
पछिला कुछ बरिस से पलनी के परिवार इहंवा आवे वाला लोग खातिर खाना, चाहे अन्नदानम के इंतजाम करे लागल बा. पलनी कहेले, “2019 में हमनी बिरयानी बनावेला खाली 140 किलो चिकन में एक लाख से जादे रुपइया खरचा कर देले रहीं.” ऊ इहो बतइलन कि कोविड के पहिले जइसे भारी संख्या में लोगआवत रहे, अबहू ओतना लोग आवे लागल बा. “सभे केहू इहंवा से संतुष्ट होके जाला.” खरचा जादे हो जाला, त पलनी आपन संगी-साथी से पइसा जुटावेलन.
“जब से हमनी मंदिर खातिर भवन बनइनी, जादे लोग जुटे लागल बा. इरुलर लोग एकरा संभाल ना सके, ह कि ना?” ऊ आपन गांव के नाम धरत गुडीगुंटा ओम शक्ति मंदिर के बारे में बात करत पूछले.


इरुलर समुदाय के लोग सांझ में जुलूस निकाले खातिर ट्रैक्टर सजावे में लागल बा


बावां: जुलूस निकाले से पहिले एगो उज्जर कद्दू फोड़ल जाला फेरु एकरा ऊपर कपूर जलावल जाला. दहिना: चूड़ी वाली, एगो मेहरारू के चूड़ी पहनावत बाड़ी
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मणिगंदन बतइले, “जब नयका मंदिर बनल, त हमनी के माटी के देवी के जगह पत्थर के मूरति स्थापित कइल गइल. ऊ लोग कहलक कि मंदिर में मूरति के प्रतिष्ठा इहे तरीका से कइल जाला. हमनी बगल में आपन माटी के मूरति भी धइले बानी. धरतिए त हमनी के माता बाड़ी, जे हमनी के रक्षा करेली.”
ऊ कहले, “ऊ लोग एगो अय्यर (ब्राह्मण पुजारी) बुलइलक. पुजारी देवी के चढ़ावल काच चाउर आउर नीम के पत्ता हटा देलन,” तनी मेहरा के ऊ कहे लगले. “हमनी जवन तरीका से पूजा करिले ओकरा से ई अलग बा.”
“कन्निअम्मा जइसन देवी के पूजा में लंबा-चउड़ा अनुष्ठान ना होखे. इहंवा ले कि एह में समूचा समुदाय भी हिस्सा ना लेवे. पूजा-पाठ आउर ओकरा करे के एगो खास तरीका पर जोर देवे, आउर फेरु एगो (अक्सरहा ब्राह्मण) पुजारी के एह में शामिल करे के नियम बन गइल बा. अलग-अलग संस्कृति के पूजा अनुष्ठान के तरीका अलग-अलग होखेला. सभे के एक नियम ना हो सके,” मानवविज्ञान में उच्च शिक्षा हासिल कर चुकल डॉ. दामोदरन कहले.
बंगलामेडु तीमिति साल दर साल भव्य भइल जात बा. मणिगंदन आउर उनकर परिवार के लागे लागल बा कि धीरे-धीरे ई त्योहार ऊ लोग के हाथ से निकलत जात बा.
पहिले हमार बाबूजी भोजन के सगरे खरचा मोई (त्योहार में भोजन के आनंद उठइला के बाद मेहमान जे कुछ पइसा प्रेम से उपहार में दे देवे) से चलावत रहस. अब ऊ (पलनी के परिवार) लोग खरचा देखेला. ऊ लोग कहेला, “मणि, तू काप्पु रिवाज पर ध्यान रख.” मणिगंदन के परिवार कबो-कबो पलनी के खेत पर काम करे जाला.


बावां: तीमिति के बारे में एगो बैनर कैसुआरिना गाछ पर लटकावल बा. तमिलनाडु मलाइवाल मक्कल संगम नाम के संघ एकरा प्रायोजित करेला. इरुलर लोग पहाड़ी जनजाति वाला इहे संघ के हिस्सा बा. सबले ऊपर दहिना कोना में स्वर्गीय पी.गोपाल के फोटो लागल बा. दहिना: के.कन्निअम्मा अंगार पार करके निकले घरिया तनी देऱ खातिर आग में बइठे के कोसिस करत बाड़ी. उनकर भाई मणिगंदन पछिला बरिस बाऊजी के जाए के पहिले ले हर साल एह परंपरा के पालन करत रहस. चूंकि परिवार के कवनो मरद ना बइठ सके, एह से कन्निअम्मा एकर जिम्मेदारी आपन कांधा पर लेले बाड़ी. एह में बहुते जोखिम होखेला. पैर जरे ना, एह खातिर अंगार पर से बहुते तेजी से निकले के पड़ेला


बावां: चंदन लगइले आउर नीम के पत्ता के बड़-बड़ गुच्छा लेले लोग एक के बाद एक अंगार पर चलत बा. केहू गोदी में छोट लइका भी लेले बा. दहिना: आग पर चले आउर आपन संकल्प पूरा करे वाला खातिर ई एगो भावुक पल होखेला
आयोजन से जुड़ल सूचना पत्र पर दिवंगत गोपाल के वलिमुरई (बिरासत) के स्वीकार करे वाला कुछ अक्षर के अलावे कहूं भी इरुलर समुदाय के जिकिर नइखे. मणिगंदन कहले, “हमनी के बाऊजी के नाम जोड़े खातिर जोर देवे के पड़ल. ऊ लोग एह में केहू के नाम देवे के ना चाहत रहे.”
तीमिति के रोज आग पर चले वाला लोग सभे तरह के डर आउर आशंका घरे छोड़ के आवेला. ऊ लोग आपन भक्ति भाव के परीक्षा देवे खातिर तइयार रहेला. नहाके पियर कपड़ा पहिनेला, गला में फूल के माला रहेला, केस में फूल सजल रहेला, सउंसे देह पर चंदन के लेप रहेला आउर हाथ में नीम के पवित्र गुच्छा रहेला. कन्निअम्मा कहली, “ओह दिन अइसन लागेला कि अम्मन हमनी के भीतरी उतर आइल बाड़ी. एहि से मरद लोग भी फूल पहिनेला.”
आग पर चले वाला लोग अंगार से भरल गड्ढा पार करे खातिर बारी-बारी से आगू बढ़ेला. जइसे-जइसे ऊ लोग आगू आवेला ऊ लोग के जोश बढ़े लागेला. उहंवा ई सभ देखे खातिर ठाड़ लोग में से केहू जयकारा लगावेला, त केहू प्रार्थना करेला. केतना लोग मोबाइल से ई सभ नजारा रिकॉर्ड करे लागेला.
इरुलर मंदिर कबो सादगी के प्रतीक रहे. अब नयका मूरति, मंदिर आउर त्योहार के ब्यवस्था से जुड़ल समीकरण बदलला के बादो, मणिगंदन आउर उनकर परिवार आपन स्वर्गवासी बाऊजी के अम्मन से कइल बादा निभा रहल बा. ओह लोग के जिनगी के रक्षा खातिर अम्मन के आगू माथा झुकइले बा. तीमिति ओह लोग के सभे चिंता हर लेवेला.
एह स्टोरी के सभे फोटो 2019 में लेवल गइल बा, जब रिपोर्टर तीमिति उत्सव देखे बंगलामेडु गइल रहली.
अनुवाद: स्वर्ण कांता